क्या भारतीय लोगो में खाने के लिए मोटे अनाज की मांग बढ़ेगी

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देश के लोग स्वास्थ्य के बारे में बात तो खूब करते हैं पर स्वादिष्ट भोजन को ही तरजीह देते हैं गरीब भी पैसा आते ही मोटे अनाज को छोड़ देता है

विचार स्वयं के

मेरे जोर इस बात पर है कि शरीर में शर्करा बनने की प्रक्रिया को धीमा कैसे किया जा सकता है चावल और गेहूं में भी फाइबर होता है पर मोटे अनाजों में ज्यादा होता है फाइबर भोजन के ग्लूकोस में रूपांतरण को धीमा कर देता है शरीर की इस व्यवस्था का सबसे अच्छा विवरण मुझे हरमन पोर्टजर की किताब वर्ण आपदा मिसअंडरस्टूड साइंस ऑफ मेटाबॉलिज्म में मिला है जिसके मुताबिक फाइबर आंतों की दीवारों पर एक जाली जैसा फिल्टर बनाता है जो शर्करा के अवशोषण को धीमा कर देता है वाह रक्त प्रवाह में रोचक तथ्यों के लिए ज्यादा जगह बनती है फाइबर लोगों को परिपूर्णता का एहसास कराता है जिससे लोग कम खाते हैं इसके अलावा आम तौर पर लोग रेशेदार की तुलना में अन्य अनाज व सब्जियों का स्वाद ज्यादा पसंद करते हैं इसी में मुझे लगता है भारत में मोटे अनाज का प्रचार अधिक सफल नहीं होगा दुनिया ने हमेशा दिखाया है कि लोग स्वास्थ्य के बारे में बात तो खूब करते हैं लेकिन स्वादिष्ट भोजन को ही सर जी देते हैं गरीब जैसे ही कुछ पैसा वाले होते हैं तो मोटे अनाज को छोड़ देते हैं सदियों से यही होता आया है बेशक मोटे अनाज जीवित रहेंगे पर उनका अलग-अलग बाजार होगा मोटे अनाजों का ज्यादा प्रचार उनके उपयोग को विभिन्न प्रयोगों के जरिए खराब करेगा ऐसा हमें प्रतीत होता है यह विचार स्वयं के हैं।

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