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भारत सरकार ने धाम समेत कई खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएससी की घोषणा की है जिसमें हुई मूल पद में से किसानों को खूब लाभ होगा न्यूनतम समर्थन मूल्य का मतलब है कि फसल की सरकारी खरीद कम से कम उस कीमत पर होगी जिसकी घोषणा सरकार ने की है सरकार समय-समय पर कृषि लागत और मूल आयोग सीएसीपी की सिफारिशों के आधार पर फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है इस बार पिछले कुछ वर्षों की तुलना में कहीं अधिक मूल्य बढ़ाए गए हैं कैबिनेट में जो फैसला किया है उसके मुताबिक साल 2023 24:00 के लिए तिल की एमएसपी सर्वाधिक बढ़ाई गई है और इसमें ₹805 प्रति कुंतल की वृद्धि की गई है इसके बाद सबसे ज्यादा बढ़ोतरी मून 803 रुपए प्रति कुंतल में की गई है कपास में ₹640 मूंगफली में ₹527 अरहर दाल में ₹400 और उड़द दाल में ₹350 प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है धान में भी 143 रुपए प्रति कुंतल की वृद्धि की गई है इन सब से किसानों को फायदा ही होगा इससे उनकी आर्थिक स्थिति ठीक होगी यह बताता है कि केंद्र की मोदी सरकार किसानों के हित में किस तरह से काम कर रही है क्योंकि हमें दलहन और खाद्य तेलों का आयात करना पड़ता है इसलिए उनके समर्थन मूल्य को अधिक बढ़ाने का काम किया गया है ताकि देश पर आयात का बोझ कम हो इतना ही नहीं सरकार दलहन तिलहन और श्री अन्य जैसे मोटे अनाजों के अलावा कई अन्य फसलों की खेती को बढ़ावा दे रही है फसलों में विविधता लाने के मकसद से किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा जैसी कई तरह की योजनाएं भी चलाई जा रही हैं यह सब तब किया जा रहा है जब कुछ असामाजिक तत्वों के बहकावे में आकर किसानों ने तीन कृषि कानून को निरस्त करने की मांग की थी और सरकार को अपने कदम वापस लेने पर मजबूर किया था अगर वह कानून लागू हो गए होते तो खरीद बिक्री में बिचौलियों का जो समांतर राज चल रहा है वह खत्म हो गया होता बरहाल न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि करके केंद्र सरकार ने देश के किसानों का भरोसा फिर से हासिल करने की एक गंभीर कोशिश की है ऐसे प्रयासों से कर्ज के तले दबे किसानों द्वारा आत्महत्या की खबरों पर लगाम लगा सकेगा उम्मीद है जल्द ही वादे के मुताबिक किसानों की आमदनी भी दुगनी हो सकेगी
सरकार हर 1 साल न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के ऐलान जरूर करती है लेकिन उसका पूरा लाभ किसानों को नहीं मिल पाता दावा किया जाता है कि इन मूल्यों पर ही फसल उत्पादों की सरकारी खरीद होती है लेकिन वास्तविकता या है कि धान और गेहूं ही ऐसी दो मुख्य फसलें हैं जिनको किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भेज पाते हैं इसके अलावा कुछ हद तक गन्ना और कपास को भी यह सुरक्षा हासिल है अगर सभी फसलों पर किसानों को यह निश्चित चिंता होती तो वे खुशी-खुशी बाकी की फसलें भी उगाते इससे दालों व खाद्य तेलों का आयात भी कम हो जाता वहां जरूरी या भी है कि कृषि लागत और मूल्य आयोग को संवैधानिक दर्जा मिले ताकि एम एस पी की कानूनी गारंटी संभव हो या करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि भारत में छोटे किसानों की संख्या सबसे अधिक 86% है न्यूनतम समर्थन मूल्य का हाल हुआ है कि अभी हरियाणा में सूरजमुखी की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर शुरू भी नहीं हुई है जबकि फसल काटी जा चुकी है सूरजमुखी के न्यूनतम समर्थन मूल्य ₹360 प्रति कुंतल की वृद्धि की गई है मगर इसका क्या फायदा है यदि इसकी खरीद ही समय पर ना हो इससे किसानों को ना सिर्फ लागत बढ़ जाती है बल्कि फसल के बेकार हो जाने का खतरा भी बढ़ जाता है हालांकि इन सब का टिकरा कुछ लोग किसानों पर ही फोड़ते हैं मगर ऐसा कहने वाले भूल जाते हैं कि कोई भी अपना नुकसान नहीं चाहेगा भास्कर अन्नदाता वर्ग जो गरीबी में जीने को मजबूर हो हमें इसका ध्यान रखना चाहिए।
आज न्यूनतम समर्थन मूल्य संबंधित कानून की जरूरत कहीं ज्यादा है ऐसे समझिए समर्थन मूल्य की 23 फसलों में बाजरा भी शामिल है लेकिन राजस्थान में पिछले कितने ही वर्षों से इसका एक दाना भी समर्थन मूल्य पर नहीं खरीदा जा रहा यह अन्याय क्यों इसलिए एमएसपी को कानूनी गारंटी मिले और समर्थन मूल्य खरीद अधिकारिता अधिनियम संसद द्वारा पारित किया जाए जिसमें कुछ विशेष प्रावधान होने चाहिए जैसे यह अधिनियम सभी कृषि मंडी वालों में लागू हो और न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम में फसल की बोली दंडनीय अपराध बने इतना ही नहीं सरकारी एजेंसियों द्वारा मंडी वार्ड से कृषि उपज की खरीद एमएसपी पर हो और तीसरा खरीद खरीद के साथ दिन में फसल का मूल्य किसानों के बैंक खाते में जमा करवा दिया जाए और 7 दिन के बाद 10% प्रति माह के हिसाब से ब्याज देने का प्रधान हो
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